Press, Share | Apr 04, 2022
यह बिल किसी दुरुपयोग के लिए नहीं लाया गया है, इसमें किसी भी डाटा के दुरुपयोग होने की संभावना भी नहीं है
यह विधेयक व्यवस्था स्थापित करने और समय के अनुकूल जो बदलाव हुए हैं उसके अनुसार दोष सिद्धि के उपयोग के लिए लाया गया है, इस बिल को एक होलिस्टिक व्यू से देखने की जरूरत है
चर्चा से कोई भागना नहीं चाहता मगर चर्चा तर्क, वास्तविकता और तथ्य के आधार पर होनी चाहिए, वोट बैंक को एड्रेस करने के लिए नहीं, चर्चा समस्या के समाधान, देश में समस्याएं कम करने और रास्ते ढूंढने के लिए होनी चाहिए
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत सरकार मानती है कि थर्ड डिग्री के आधार पर इन्वेस्टिगेशन नहीं होगा बल्कि तकनीक, डाटा और इंफॉर्मेशन के आधार पर इन्वेस्टिगेशन होगा
टेक्नोलॉजी, डाटा और इंफॉर्मेशन के आधार पर अगर सजा दिलाई जा सकती है तो थर्ड डिग्री की जरूरत ही नहीं पड़ेगी और थर्ड डिग्री से निजात दिलाने के लिए तकनीक का सहारा लिया जाएगा
पोटा देश हित का कानून था लेकिन तुष्टीकरण की राजनीति के लिए इसे रद्द किया गया
हम वोट बैंक की पॉलिटिक्स नहीं करते हैं, हम राजनीति में देश को सुरक्षित, आगे बढ़ाने और देश को दुनिया में सर्वोच्च स्थान पर ले जाने के लिए आए हैं
2019 में देश में 51 लाख से अधिक केस हुए, UAPA के तहत 1200 केस हुए हैं, क्या देश के खिलाफ काम करने वालों के खिलाफUAPA नहीं लगेगा? UAPA किसी जाति धर्म के लिए नहीं है, कुछ लोगों की पैरवी एक धर्म जाति के आधार पर है
देश को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी देश की जनता ने हमें दी है, आप हमें इस तरह से नहीं डरा सकते
जो लोग ह्युमन राइट की दुहाई दे रहे हैं उनसे करबद्ध निवेदन है कि आप उनके भी ह्युमन राइट की चिंता करिए जो अपराधियों से प्रताड़ित होते हैं
किसी बच्ची का रेप हो जाएगा, किसी की हत्या हो जाएगी, किसी की गाढ़ी कमाई को कोई लूट खसोट कर ले जाएगा, क्या उनके ह्युमन राइट नहीं है ?
आपको लूट और बलात्कार करने वाले की चिंता है, मगर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार का दायित्व कानून के हिसाब से जीने वाले लोगों के ह्यूमन राइट की चिंता करना है और उसे इससे कोई नहींरोक सकता
ह्यूमन राइट के कई मायने होते हैं, एक ही चश्मे और नजरिए से ह्यूमन राइट को नहीं देखा जा सकता
यह बिल देश के करोड़ों कानून का पालन करने वाले नागरिकों के मानव अधिकारों की रक्षा के लिए है, इसको कोई अन्यथा पेंट करने का प्रयास न करे
इस विधेयक में सिर्फ नए आयाम जोड़े गए हैं और वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर इन आयामों को बिल के अंदर समाहित किया गया है
लोग पहले भी फिंगर प्रिंट देते थे कोई विरोध नहीं करता था, यह बिल देश में दोष सिद्धि के प्रमाण को बढ़ाकर गुनाहों की संख्या सीमित करने के एकमात्र उद्देश्य के लिए लाया गया है
विधेयक FIR और दोष सिद्धि के माध्यम से गुनाह करने वालों को सजा दिलाकर समाज में एक कठोर संदेश भेजने के लिए लाया गया है, इसके पीछे और कोई उद्देश्य नहीं है
पुलिस राज्य और शासन का सबसे दृष्टिगत होने वाला चेहरा है, पुलिस फर्स्ट रिस्पांडर होती है, पुलिस किसी को पकड़ तो लेती है मगर अदालत में उसके दोष को सिद्ध नहीं कर पाती है
इसीलिए 2014 में प्रधानमंत्री मोदी जी ने देश भर की पुलिस फोर्स के सामने स्मार्ट (SMART) पुलिसिंग का कनसेप्ट रखा
इसमें S से मतलब सख्त परंतु संवदेनशील, M से आधुनिक तथा मोबाइल, A से चोकन्ना तथा जवाबदेह, R से भरोसेमंद तथा प्रतिक्रियात्मक और T से आधुनिक प्रौद्योगिकी से लैस और प्रशिक्षित, T वाले हिस्से की प्रतिपूर्ति के लिए ही यह बिल लाया गया है
2020 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के डेटा के हिसाब से मर्डर करनेवालों में सिर्फ 44% लोगों को सजा करा पाए, बलात्कार में 39%, अटेम्प्ट टू मडर 24%, डकैती में 29% और रोबरी में सिर्फ 38% को ही सजा करवा पाये
इसके सापेक्ष में दुनियाभर के डाटा की अगर स्टडी करें तो इंग्लैंड में यह औसत 83.6 % , कनाडा 68 %, साउथ अफ्रीका 82% ऑस्ट्रेलिया 97% और यूएसए में 93% है, ये सभी देश भी ह्यूमन राइट चैंपियन देश हैं और इन सब के यहाँ इससे भी कठोर कानून उपलब्ध हैं
क्राइम भी बदल गए और क्रिमिनल भी बदल गए, अब क्राइम और क्रिमिनल दोनों आधुनिक तकनीक से लैस होकर अपराध करने लगे हैं, हम पुलिस को आधुनिक तकनीक से लैस ना करें देश में अब इस प्रकार की व्यवस्था नहीं चलती, अब समय आ गया है कि हम इसको बदलें
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने इसके लिए ढेर सारे प्रयास किए है, मोदी जी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब विश्व की सबसे पहली फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी गुजरात में बनाई गई और श्री नरेंद्र मोदी जी जब प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी बनाने का काम किया
हमने रक्षा शक्ति यूनिवर्सिटी भी बनाई, यह यूनिवर्सिटी देश की आंतरिकऔर बाह्य सुरक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले बच्चों को इससे जुड़ी सभी विधाओं का अध्ययन करने की सुविधा प्रदान करती है
ये यूनिवर्सिटी इसलिए बनी गईं ताकि दोषसिद्धि के प्रमाण को बढ़ाया जा सके, पुलिस और कानूनी एजेंसियां आरोपी और अपराधी से दो कदम आगे हों
हमें नेक्स्ट जनरेशन क्राइम के बारे में सोचते हुए अभी से उसे रोकने का प्रयास करना पड़ेगा, क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को नए युग में ले जाने का प्रयास करना होगा क्योंकि हम पुरानी तकनीकों से नेक्स्ट जनरेशन क्राइम को टैकल नहीं कर सकते
इसके लिए बहुत सारे इनीशिएटिव लिए गए हैं, इसलिए इस विधेयक को आइसोलेशन में मत देखिए, यह बिल इन सभी इनीशिएटिव में से एक है जिसे एक हॉलिस्टिक व्यू से देखने की जरूरत है
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में गृह मंत्रालय में 2020 में एक मॉडस ऑपरेंडी ब्यूरो भी बनाया है जिसमें मॉडस ऑपरेंडी की स्टडी होगी और इसके आधार पर अलग-अलग क्राइम को समन करने और दंड देने की प्रक्रिया होगी
आईपीसी (IPC) और सीआरपीसी (CrPC) में सुधार के लिए भी एक बहुत बड़ी एक्सरसाइज शुरू की गई है, इसके लिए सभी सांसदों, मुख्यमंत्रियों, सभी राज्यों के गृह सचिवों और सभी लॉ यूनिवर्सिटीज को पत्र लिखे गए हैं
जब हम सीआरपीसी, आईपीसी और एविडेंस एक्ट में सुधार लेकर आएंगे तो उसे स्टैंडिंग कमेटी या गृह मंत्रालय की कंसलटेटिव कमेटी में अवश्य भेजेंगे, हमें इस पर कोई आपत्ति नहीं है
सरकार ने डायरेक्टर ऑफ प्रॉसीक्यूशन का एक प्रस्ताव भी राज्य को दिया है, साथ ही ई गवर्नेंस के लिए बहुत सारे इनीशिएटिव लिए गए हैं
सीसीटीएनएस (CCTNS) व्यवस्था लेकर आए हैं जो क्रिमिनल जस्टिस डिलीवरी सिस्टम के लिए एक मुख्य आईटी स्तंभ है।
जनवरी 2022 तक 16390 यानी शत् प्रतिशत पुलिस स्टेशन में सीसीटीएनएस लागू कर दिया गया है और 99% पुलिस स्टेशन में FIR का रजिस्ट्रेशन सीसीटीएनएस के आधार पर होता है
इससे जो डाटा उपलब्ध होता है उसके आधार पर पूरे देश के क्राइम का एनालिसिस होता है और क्राइम को रोकने की रणनीति बनती है और गृह मंत्रालय द्वारा राज्यों को उसकी एडवाइजरी भेजी जाती है
सीसीटीएनएस के साथ ई-प्रिज़न, ई-फॉरेंसिक, ई-प्रॉसीक्यूशन, ई-कोर्ट का मॉडल बनाकर राज्यों को भेजा है और इन सब इनीशिएटिव के माध्यम से हम क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को ताकत देना चाहते हैं
देश में 751 अभियोजन जिलों में ई अभियोजन, यानी ई प्रॉसीक्यूशन लागू हो चुका है, ई-प्रिज़न को 1259 अलग-अलग जेलों में लागू कर दिया गया है और ई-फॉरेंसिक एप्लीकेशन को 117 फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी ने लागू कर दिया है
देशभर में CCTNS साफ्टवेयर में 7 करोड़ से अधिक FIR उपलब्ध हैं और CCTNS National Database में लगभग 28 करोड़ पुलिस रिकार्ड हैं जो खोज और संदर्भ के लिए राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों और केन्द्रीय जांच एजेंसियों के लिए उपलब्ध है
इन सभी ई-प्रयासों को एक-दूसरे के साथ जोड़ने के लिए इंटर-ऑपरेटेबलक्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (ICJS) लाए हैं
ICJS में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉक चेन, एनालिटिकल टूल्स और फिंगर प्रिंट सिस्टम का पुलिस स्टेशन तक विस्तार से सारी व्यवस्था का उपयोग और विश्लेषण करके हर थाने में कौन सा अपराध ज्यादा है, हर थाने के अफसर की किस अपराध को नाबूत करने में दक्षता होनी चाहिए, इसकी किस प्रकार से ट्रेनिंग होनी चाहिए और हर जिले में किस प्रकार के अपराधों को रोकने की व्यवस्था करने की जरूरत है यह सब यहां से राज्यों को जाने वाला है
Investigation Tracking System for Sexual Offences (ITSSO) का एक online analytical tool शुरू किया गया है और “यौन अपराधियों का राष्ट्रीय डेटाबेस" (NDSO) आरंभ किया है जिसमें देश के 12 लाख से अधिक यौन अपराधियों का डाटा है, इस सब में कहीं से भी अभी तक कोई लिकेज नहीं हुआ है
देश की अदालत में इसके मिसयूज की कोई कंप्लेन नहीं आई है क्योंकि टेक्नोलॉजी इसको परमिट नहीं करती है, तकनीक के माध्यम से ही व्यवस्था की गई है कि इसका दुरुपयोग न हो
प्रधानमंत्री मोदी जी का यह इनिशिएटिव क्राइम को कम और देश की आंतरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए है
गृह मंत्री ने कहा कि Cri-MAC (Crime Multi Agency Center) लागू किया गया है और 60 हजार लोगों ने इसका इस्तेमाल किया है, इससे 24,000 से ज्यादा अलर्ट देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजे गए हैं और उसमें से कई अपराधी पकड़ लिए गए हैं
लापता व्यक्ति की खोज के लिए भी हमने सारी एफआईआर का एनालिसिस कर उसका डेटाबेस लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी से साझा किया और 14,000 की तलाशी ली गई, उनमें से 12,000 लोग प्राप्त कर लिए गए
डेटाबेस से डरने की जरूरत नहीं है, पूरी दुनिया डेटाबेस का उपयोग कर रही है और हमें भी करना पड़ेगा
अब तक 16,176 नागरिकों ने घोषित अपराधियों की जानकारी का इस्तेमाल किया
भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) के अंतर्गत राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (NCRP) में 9 लाख से अधिक शिकायतें प्राप्त हुई उनमें से 18,000 शिकायतें एफआईआर में कन्वर्ट कर दी गई
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने सिर्फ ई इनिशिएटिव पर ही 2,080 करोड़ रुपये खर्च किए हैं
एक नेशनल ऑटोमेटेड फिंगरप्रिंट आईडेंटिफिकेशन सिस्टम (NAFIS) को इंट्रोड्यूस किया गया है, इसका अभी ट्रायल चल रहा है और नफीस के पास अभी लगभग एक करोड़ से ज्यादा फिंगरप्रिंट हैं
नफीस का डाटा एनसीआरबी में स्टोर है और इसमें किसी का एक्सेस नहीं है, जब तक जरूरत नहीं होगी तब तक इसमें किसी लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी का भी एक तरफा एक्सेस नहीं होगा, नफीस को सीसीटीएनएस के माध्यम से देश के हर पुलिस स्टेशन से जोड़ेंगे
बहुत सारे एनालिसिस मे सजा न हो पाने के जो कारण निकाले गए हैं उनके अनुसार सबूतों की कमी के आधार पर हर साल 7.5 लाख केस बंद कर दिए जाते हैं, 15 लाख केस न्याय की अपेक्षा में पुख्ता सबूतों के अभाव में पेंडिंग हैं
देरी से मिले न्याय का कोई उपयोग नहीं है, समय पर न्याय होना चाहिए और दोषियों को दंड भी मिलना चाहिए तभी जाकर कानून का राज स्थापित होगा
यह विधेयक 1980 में विधि आयोग द्वारा सरकार को भेजी अपनी 87वीं रिपोर्ट में बंदी शनाख्त अधिनियम 1920 में उचित संशोधन कर उसे विज्ञान आधारित बनाने की सिफारिश के आधार पर लाया गया है
रिपोर्ट में विधि आयोग ने स्वीकार किया था कि पहचान के उद्देश्य एकत्रित किए जाने वाले मापों को सीमित नहीं रखा जा सकता, आधुनिक तकनीक का उपयोग कर उसे सुरक्षित रखना चाहिए, सीमित रखने का कंसेप्ट ठीक नहीं होगा
सरकार इसे सुरक्षित रखने की पूरी व्यवस्था करेगी ताकि इसका दुरुपयोग कहीं पर भी दुरुपयोग ना हो
सरकार जेल में बंद कैदियों के सुधार के लिए एक मॉडल व्यवस्था ला रही है जिस पर राज्यों के साथ सलाह मशवरा अंतिम चरण में है
इसमें कैदियों के पुनर्वसन और जेल से मुक्त होने के बाद उन्हें पूर्ण प्रस्थापित करने और उनके लिए आफ्टर केयर सेवाओं की एक पुख्ता योजना है
जेल अधिकारियों के कर्तव्य,शक्तियों और जिम्मेदारी तथा आचरण का नियमन करने के लिए भी इसमें पूरा प्रावधान किया गया है
साथ ही इसमें अधिकतम सुरक्षित जेल,उच्चत्तम सुरक्षा वाली जेल,खुली जेल, महिलाओं की जेल और ट्रांसजेंडरों के लिए अलग खोली की व्यवस्था भी करने जा रहे हैं
महिला बंदियों के लिए अलग जेल और बच्चों के साथ जो महिला है उसके लिए भी अलग बैरक बनाने की व्यवस्था की जा रही है
कैदियों का मनोवैज्ञानिक आंकलन कर उनकी क्राइम की आदत छुड़वाने के लिए साइकोलॉजिकल डॉक्टरों की सर्विस दी जाएगी, काउंसलिंग,थेरेपी और ट्रेनिंग की भी व्यवस्था की जा रही है
बंदियों को कानूनी सहायता, कैदी जो मजदूरी करते हैं उस कमाई से दंड भरकर उसको जल्दी जेल से छोड़ने की व्यवस्था भी की जा रही है
पैरोल, फरलो और समय से पहले रिहाई को भी हम बहुत रिलैक्स करने जा रहे हैं, जेल कैदियों को प्रौद्योगिकी के प्रशिक्षण की भी व्यवस्था और जेल में वीडियो कॉन्फ्रेंस की व्यवस्था को भी और सुदृढ़ करने जा रहे हैं
देश में बैलेंस बढ़ाने की जरूरत है, व्यक्ति के अधिकारों के साथ-साथ समाज के अधिकारों की भी चिंता करनी पड़ेगी और दोनों के बीच बैलेंस बढ़ाना पड़ेगा
व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करते करते समाज के अधिकारों का ही हनन हो जाए इस प्रकार से व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा नहीं हो सकती
अब हम क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में आधुनिक तकनीक के उपयोग में देरी नहीं कर सकते हैं
देश को सुरक्षित बनाने, आरोपियों को सजा दिलाने और देश की आंतरिक सुरक्षा को अभेद्य बनाने के लिए सभी प्रकार की तकनीकों का उपयोग होना चाहिए और उसको परिणाम लक्षित बनाकर देश को सुरक्षित रखना चाहिए
सभी सदस्यों से अनुरोध है कि वे इस बिल को सर्वसम्मति से पारित करें
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने आज लोक सभा में दंड प्रक्रिया (शनाख्त) विधेयक 2022 सदन के विचार और पारित किए जाने के लिए प्रस्तुत किया।विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि यह बिल किसी दुरुपयोग के लिए नहीं लाया गया है, इसमें किसी भी डाटा के दुरुपयोग होने की संभावना भी नहीं है। उन्होने कहा की यह विधेयक व्यवस्था स्थापित करने और समय के अनुकूल जो बदलाव हुए हैं उसके अनुसार दोष सिद्धि के उपयोग के लिए लाया गया है। श्री अमित शाह ने कहा कि बिल को एक होलिस्टिक व्यू से देखने की जरूरत है। गृह मंत्री ने कहा कि चर्चा से कोई भागना नहीं चाहता मगर चर्चा तर्क, वास्तविकता और तथ्य के आधार पर होनी चाहिए, वोट बैंक को एड्रेस करने के लिए नहीं। चर्चा समस्या के समाधान, देश में समस्याएं कम करने और रास्ते ढूंढने के लिए होनी चाहिए।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत सरकार मानती है कि थर्ड डिग्री के आधार पर इन्वेस्टिगेशन नहीं होगा बल्कि तकनीक, डाटा और इंफॉर्मेशन के आधार पर इन्वेस्टिगेशन होगा।टेक्नोलॉजी, डाटा और इंफॉर्मेशन के आधार पर अगर सजा दिलाई जा सकती है तो थर्ड डिग्री की जरूरत ही नहीं पड़ेगी और थर्ड डिग्री से निजात दिलाने के लिए तकनीक का सहारा लिया जाएगा। उन्होने कहा कि जो लोग तुष्टीकरण की राजनीति करते हैं वो इस बिल पर आशंकाएं खड़ी कर रहे हैं। पोटा देश हित का कानून था लेकिन तुष्टीकरण की राजनीति के लिए इसे रद्द किया गया। श्री शाह ने कहा कि हम वोट बैंक की पॉलिटिक्स नहीं करते हैं, हम राजनीति में देश को सुरक्षित, आगे बढ़ाने और देश को दुनिया में सर्वोच्च स्थान पर ले जाने के लिए आए हैं। श्री अमित शाह ने कहा कि 2019 में देश में 51 लाख से अधिक केस हुए, UAPA के तहत 1200 केस हुए हैं। उन्होने पूछा कि क्या देश के खिलाफ काम करने वालों के खिलाफUAPA नहीं लगेगा? श्री शाह ने कहा कि UAPA किसी जाति धर्म के लिए नहीं है, कुछ लोगों की पैरवी एक धर्म जाति के आधार पर है। देश को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी देश की जनता ने हमें दी है, आप हमें इस तरह से नहीं डरा सकते।
श्री अमित शाह ने कहा कि जो लोग ह्युमन राइट की दुहाई दे रहे हैं उनसे करबद्ध निवेदन है कि आप उनके भी ह्युमन राइट की चिंता करिए जो अपराधियों से प्रताड़ित होते हैं। किसी बच्ची का रेप हो जाएगा,किसी की हत्या हो जाएगी, किसी की गाढ़ी कमाई को कोई लूट खसोट कर ले जाएगा, क्या उनके ह्युमन राइट नहीं है ? आपको लूट और बलात्कार करने वाले की चिंता है, मगर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार का दायित्व कानून के हिसाब से जीने वाले लोगों के ह्यूमन राइट की चिंता करना है और उसे इससे कोई नहींरोक सकता। गृह मंत्री ने कहा कि ह्यूमन राइट के कई मायने होते हैं, एक ही चश्मे और नजरिए से ह्यूमन राइट को नहीं देखा जा सकता, ह्यूमन राइट को देखने और ह्यूमन राइट प्रोटेक्शन के कई एंगल होते हैं। उन्होने कहा कि वे बहुत विनम्रता और दृढ़ता के साथ कहना चाहते हैं कि यह बिल देश के करोड़ों कानून का पालन करने वाले नागरिकों के मानव अधिकारों की रक्षा के लिए है, इसको कोई अन्यथा पेंट करने का प्रयास न करे।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि इस विधेयक में सिर्फ नए आयाम जोड़े गए हैं और वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर इन आयामों को बिल के अंदर समाहित किया गया है।उन्होने कहा कि लोग पहले भी फिंगर प्रिंट देते थे कोई विरोध नहीं करता था, यह बिल देश में दोष सिद्धि के प्रमाण को बढ़ाकर गुनाहों की संख्या सीमित करने के एकमात्र उद्देश्य के लिए लाया गया है। विधेयक FIR और दोष सिद्धि के माध्यम से गुनाह करने वालों को सजा दिलाकर समाज में एक कठोर संदेश भेजने के लिए लाया गया है, इसके पीछे और कोई उद्देश्य नहीं है।
श्री अमित शाह ने कहा कि पुलिस राज्य और शासन का सबसे दृष्टिगत होने वाला चेहरा है, पुलिस फर्स्ट रिस्पांडर होती है, पुलिस किसी को पकड़ तो लेती है मगर अदालत में उसके दोष को सिद्ध नहीं कर पाती है।इसीलिए 2014 में प्रधानमंत्री मोदी जी ने देश भर की पुलिस फोर्स के सामने स्मार्ट (SMART) पुलिसिंग का कनसेप्ट रखा। इसमें S से मतलब सख्त परंतु संवदेनशील, M से आधुनिक तथा मोबाइल, A से चोकन्ना तथा जवाबदेह, R से भरोसेमंद तथा प्रतिक्रियात्मक और T से आधुनिक प्रौद्योगिकी से लैस और प्रशिक्षित। उन्होने कहा कि T वाले हिस्से की प्रतिपूर्ति के लिए ही यह बिल लाया गया है। उन्होने कहा कि 2020 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के डेटा के हिसाब से मर्डर करनेवालों में सिर्फ 44% लोगों को सजा करा पाए, बलात्कार में 39%, अटेम्प्ट टू मडर 24%, डकैती में 29% और रोबरी में सिर्फ 38% को ही सजा करवा पाये। गृह मंत्री ने कहा कि इसके सापेक्ष में दुनियाभर के डाटा की अगर स्टडी करें तो इंग्लैंड में यह औसत 83.6 % , कनाडा 68 %, साउथ अफ्रीका 82% ऑस्ट्रेलिया 97% और यूएसए में 93% है। ये सभी देश भी ह्यूमन राइट चैंपियन देश हैं और इन सब के यहाँ इससे भी कठोर कानून उपलब्ध हैं।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि क्राइम भी बदल गए और क्रिमिनल भी बदल गए, अब क्राइम और क्रिमिनल दोनों आधुनिक तकनीक से लैस होकर अपराध करने लगे हैं,हम पुलिस को आधुनिक तकनीक से लैस ना करें देश में अब इस प्रकार की व्यवस्था नहीं चलती। उन्होने कहा कि अब समय आ गया है कि हम इसको बदलें। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने इसके लिए ढेर सारे प्रयास किए है। मोदी जी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब विश्व की सबसे पहली फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी गुजरात में बनाई गई और श्री नरेंद्र मोदी जी जब प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी बनाने का काम किया। श्री शाह ने कहा कि सिर्फ एक यूनिवर्सिटी ही नहीं बनाई, 6 राज्यों में इसके एफिलिएटिड कॉलेज खोले गए, सब जगह फॉरेंसिक साइंस की अलग-अलग विधाओं के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस खोलने का काम भी किया गया है। हमने रक्षा शक्ति यूनिवर्सिटी भी बनाई, यह यूनिवर्सिटी देश की आंतरिकऔर बाह्य सुरक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले बच्चों को इससे जुड़ी सभी विधाओं का अध्ययन करने की सुविधा प्रदान करती है। ये यूनिवर्सिटी इसलिए बनी गई हैं ताकि दोषसिद्धि के प्रमाण को बढ़ाया जा सके, पुलिस और कानूनी एजेंसियां आरोपी और अपराधी से दो कदम आगे हों।
श्री अमित शाह ने कहा कि हमें नेक्स्ट जनरेशन क्राइम के बारे में सोचते हुए अभी से उसे रोकने का प्रयास करना पड़ेगा, क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को नए युग में ले जाने का प्रयास करना होगा क्योंकि हम पुरानी तकनीकों से नेक्स्ट जनरेशन क्राइम को टैकल नहीं कर सकते।उन्होने कहा कि इसके लिए बहुत सारे इनीशिएटिव लिए गए हैं, इसलिए इस विधेयक को आइसोलेशन में मत देखिए, यह बिल इन सभी इनीशिएटिव में से एक है जिसे एक हॉलिस्टिक व्यू से देखने की जरूरत है। गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में गृह मंत्रालय में 2020 में एक मॉडस ऑपरेंडी ब्यूरो भी बनाया है जिसमें मॉडस ऑपरेंडी की स्टडी होगी और इसके आधार पर अलग-अलग क्राइम को समन करने और दंड देने की प्रक्रिया होगी। गृह मंत्री ने कहा कि आईपीसी (IPC), सीआरपीसी (CrPC) में सुधार के लिए भी एक बहुत बड़ी एक्सरसाइज शुरू की गई है। इसके लिए सभी सांसदों, मुख्यमंत्रियों, सभी राज्यों के गृह सचिवों और सभी लॉ यूनिवर्सिटीज को पत्र लिखे गए हैं। सबके अभिप्राय आ रहे हैं और जब हम सीआरपीसी, आईपीसी और एविडेंस एक्ट में सुधार लेकर आएंगे तो उसे स्टैंडिंग कमेटी या गृह मंत्रालय की कंसलटेटिव कमेटी में अवश्य भेजेंगे, हमें इस पर कोई आपत्ति नहीं है।
गृह मंत्री ने कहा कि इसके साथ-साथ सरकार ने डायरेक्टर ऑफ प्रॉसीक्यूशन का एक प्रस्ताव भी राज्य को दिया है। साथ ही ई गवर्नेंस के लिए बहुत सारे इनीशिएटिव लिए गए हैं।सीसीटीएनएस (CCTNS) व्यवस्था लेकर आए हैं जो क्रिमिनल जस्टिस डिलीवरी सिस्टम के लिए एक मुख्य आईटी स्तंभ है। जनवरी 2022 तक 16390 यानी शत् प्रतिशत पुलिस स्टेशन में सीसीटीएनएस लागू कर दिया गया है और 99% पुलिस स्टेशन में FIR का रजिस्ट्रेशन सीसीटीएनएस के आधार पर होता है। इससे जो डाटा उपलब्ध होता है उसके आधार पर पूरे देश के क्राइम का एनालिसिस होता है और क्राइम को रोकने की रणनीति बनती है और गृह मंत्रालय द्वारा राज्यों को उसकी एडवाइजरी भेजी जाती है। उन्होंने कहा कि हमने सीसीटीएनएस के साथ ई-प्रिज़न, ई-फॉरेंसिक, ई-प्रॉसीक्यूशन, ई-कोर्ट का मॉडल बनाकर राज्यों को भेजा है और इन सब इनीशिएटिव के माध्यम से हम क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को ताकत देना चाहते हैं। देश में 751 अभियोजन जिलों में ई अभियोजन, यानी ई प्रॉसीक्यूशन लागू हो चुका है, ई-प्रिज़न को 1259 अलग-अलग जेलों में लागू कर दिया गया है और ई-फॉरेंसिक एप्लीकेशन को 117 फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी ने लागू कर दिया है। श्री शाह ने कहा कि देशभर में CCTNS साफ्टवेयर में 7 करोड़ से अधिक FIR उपलब्ध हैं और CCTNS National Database में लगभग 28 करोड़ पुलिस रिकार्ड हैं जो खोज और संदर्भ के लिए राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों और केन्द्रीय जांच एजेंसियों के लिए उपलब्ध है। इन सभी ई-प्रयासों को एक-दूसरे के साथ जोड़ने के लिए इंटर-ऑपरेटेबलक्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (ICJS) लाए हैं। ICJS में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉक चेन, एनालिटिकल टूल्स और फिंगर प्रिंट सिस्टम का पुलिस स्टेशन तक विस्तार से सारी व्यवस्था का उपयोग और विश्लेषण करके हर थाने में कौन सा अपराध ज्यादा है, हर थाने के अफसर की किस अपराध को नाबूत करने में दक्षता होनी चाहिए, इसकी किस प्रकार से ट्रेनिंग होनी चाहिए और हर जिले में किस प्रकार के अपराधों को रोकने की व्यवस्था करने की जरूरत है यह सब यहां से राज्यों को जाने वाला है।
श्री अमित शाह ने कहा कि Investigation Tracking System for Sexual Offences (ITSSO) का एक online analytical tool शुरू किया गया है और “यौन अपराधियों का राष्ट्रीय डेटाबेस"(NDSO) आरंभ किया है जिसमें देश के 12 लाख से अधिक यौन अपराधियों का डाटा है। उन्होने कहा कि इस सब में कहीं से भी अभी तक कोई लिकेज नहीं हुआ है। देश की अदालत में इसके मिसयूज की कोई कंप्लेन नहीं आई है क्योंकि टेक्नोलॉजी इसको परमिट नहीं करती है। टेक्नोलॉजी के माध्यम से ही व्यवस्था की गई है कि इसका दुरुपयोग न हो। श्री शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी जी का यह इनिशिएटिव क्राइम को कम और देश की आंतरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए है। गृह मंत्री ने कहा कि Cri-MAC (Crime Multi Agency Center) लागू किया गया है और 60 हजार लोगों ने इसका इस्तेमाल किया है। इससे 24,000 से ज्यादा अलर्ट देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजे गए हैं और उसमें से कई अपराधी पकड़ लिए गए हैं। उन्होंने कहा कि लापता व्यक्ति की खोज के लिए भी हमने सारी एफआईआर का एनालिसिस कर उसका डेटाबेस लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी से साझा किया और 14,000 की तलाशी ली गई, उनमें से 12,000 लोग प्राप्त कर लिए गए। गृह मंत्री ने कहा कि डेटाबेस से डरने की जरूरत नहीं है, पूरी दुनिया डेटाबेस का उपयोग कर रही है और हमें भी करना पड़ेगा। उन्होने कहा कि अब तक 16,176 नागरिकों ने घोषित अपराधियों की जानकारी का इस्तेमाल किया है। गृह मंत्री ने कहा कि भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) के अंतर्गत राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (NCRP) में 9 लाख से अधिक शिकायतें प्राप्त हुई उनमें से 18,000 शिकायतें एफआईआर में कन्वर्ट कर दी गई।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने सिर्फ ई इनिशिएटिव पर ही 2,080 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।उन्होंने कहा कि एक नेशनल ऑटोमेटेड फिंगरप्रिंट आईडेंटिफिकेशन सिस्टम (NAFIS) को इंट्रोड्यूस किया गया है। इसका अभी ट्रायल चल रहा है और नफीस के पास अभी लगभग एक करोड़ से ज्यादा फिंगरप्रिंट हैं। नफीस का डाटा एनसीआरबी में स्टोर है और इसमें किसी का एक्सेस नहीं है, जब तक जरूरत नहीं होगी तब तक इसमें किसी लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी का भी एक तरफा एक्सेस नहीं होगा। उन्होने कहा कि हम नफीस को सीसीटीएनएस के माध्यम से देश के हर पुलिस स्टेशन से जोड़ेंगे। श्री शाह ने कहा कि बहुत सारे एनालिसिस मे सजा न हो पाने के जो कारण निकाले गए हैं उनके अनुसार सबूतों की कमी के आधार पर हर साल 7.5 लाख केस बंद कर दिए जाते हैं। 15 लाख केस न्याय की अपेक्षा में पुख्ता सबूतों के अभाव में पेंडिंग हैं। गृह मंत्री ने कहा कि उनका मानना है कि देरी से मिले न्याय का कोई उपयोग नहीं है। समय पर न्याय होना चाहिए और दोषियों को दंड भी मिलना चाहिए तभी जाकर कानून का राज स्थापित होगा।
श्री अमित शाह ने कहा कि यह विधेयक 1980 में विधि आयोग द्वारा सरकार को भेजी अपनी 87वीं रिपोर्ट में बंदी शनाख्त अधिनियम 1920 में उचित संशोधन कर उसे विज्ञान आधारित बनाने की सिफारिश के आधार पर लाया गया है। उन्होंने कहा कि उस रिपोर्ट में विधि आयोग ने स्वीकार किया था कि पहचान के उद्देश्य एकत्रित किए जाने वाले मापों को सीमित नहीं रखा जा सकता।आधुनिक तकनीक का उपयोग कर उसे सुरक्षित रखना चाहिए, सीमित रखने का कंसेप्ट ठीक नहीं होगा। उन्होने कहा कि सरकार इसे सुरक्षित रखने की पूरी व्यवस्था करेगी ताकि इसका दुरुपयोग कहीं पर भी दुरुपयोग ना हो।
गृह मंत्री ने कहा कि सरकार जेल में बंद कैदियों के सुधार के लिए एक व्यवस्था ला रही है जिसपर राज्यों के साथ सलाह मशवरा अंतिम चरण में है।इसमें कैदियों के पुनर्वसन और जेल से मुक्त होने के बाद उन्हें पूर्ण प्रस्थापित करने और उनके लिए आफ्टर केयर सेवाओं की एक पुख्ता योजना है। जेल अधिकारियों के कर्तव्य,शक्तियों और जिम्मेदारी तथा आचरण का नियमन करने के लिए भी इसमें पूरा प्रावधान किया गया है। साथ ही इसमें अधिकतम सुरक्षित जेल,उच्चत्तम सुरक्षा वाली जेल,खुली जेल, महिलाओं की जेल और ट्रांसजेंडरों के लिए अलग खोली की व्यवस्था भी करने जा रहे हैं। महिला बंदियों के लिए अलग जेल और बच्चों के साथ जो महिला है उसके लिए भी अलग बैरक बनाने की व्यवस्था की जा रही है। उन्होने कहा कि वहां पर कैदियों का मनोवैज्ञानिक आंकलन कर उनकी क्राइम की आदत छुड़वाने के लिए साइकोलॉजिकल डॉक्टरों की सर्विस दी जाएगी। काउंसलिंग,थेरेपी और ट्रेनिंग की भी व्यवस्था करने जा रहे हैं। बंदियों को कानूनी सहायता का प्रावधान भी करने जा रहे हैं। कैदी जो मजदूरी करते हैं उस कमाई से दंड भरकर उसको जल्दी जेल से छोड़ने की व्यवस्था भी की जा रही है। पैरोल, फरलो और समय से पहले रिहाई को भी हम बहुत रिलैक्स करने जा रहे हैं। जेल कैदियों को प्रौद्योगिकी के प्रशिक्षण की भी व्यवस्था और जेल में वीडियो कॉन्फ्रेंस की व्यवस्था को भी हम और सुदृढ़ करने जा रहे हैं।
श्री अमित शाह ने कहा कि देश में बैलेंस बढ़ाने की जरूरत है, व्यक्ति के अधिकारों के साथ-साथ समाज के अधिकारों की भी चिंता करनी पड़ेगी और दोनों के बीच बैलेंस बढ़ाना पड़ेगा।व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करते करते समाज के अधिकारों का ही हनन हो जाए इस प्रकार से व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा नहीं हो सकती। गृह मंत्री ने कहा कि अब हम क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में आधुनिक तकनीक के उपयोग में देरी नहीं कर सकते हैं। इस देश को सुरक्षित बनाने, आरोपियों को सजा दिलाने और देश की आंतरिक सुरक्षा को अभेद्य बनाने के लिए सभी प्रकार की तकनीकों का उपयोग होना चाहिए और उसको परिणाम लक्षित बनाकर देश को सुरक्षित रखना चाहिए। उन्होने सभी सदस्यों से अनुरोध किया कि वे इस बिल को सर्वसम्मति से पारित करें।